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सोमवार, 4 नवंबर 2013

ये तुम हो या तुम्हारे होने का अहसास

हवाओं  ने छेड़े हैं आज फिर से मधुर गान
चाँदनी से भरा है  सारा आसमान...
ये जो मौसम  ने बदली है करवट आज
ये तुम हो या तुम्हारे होने का अहसास।।।।

करने लगा है दिल मेरा खुद से खुद ही बात
मिली  है जैसे बिन माँगे खुशियों कि सौगात...
बदला है समां ये , हुई जैसे सावन की पहली बरसात
ये तुम हो या तुम्हारे होने का अहसास।।।

बहके -बहके से कुछ कदम हैं मेरे
बावरे से कुछ स्वप्न हुए हैं मेरे
नहीं हैं  बस में मेरे , अब मेरे जज़बात
ये तुम हो या तुम्हारे होने का अहसास।।।

देखता हूँ जिधर भी फिजायें बदली सी हैं
मेरी आरजुएं आज कुछ पगली सी हैं
कैसे न माने मेरा दिल कि कुछ तो है बात
ये तुम हो या तुम्हारे होने का अहसास।।।

यूँ  जो कभी भी चली आती हो तुम
मेरे होने का एक नया एहसास लाती हो तुम
कातिल तो हैं पर क्या कमाल हैं तुम्हारे ये अंदाज़
ये तुम हो या तुम्हारे होने का अहसास।।।

आज पूरी सी दुआएं लगती हैं मुझे अपनी
बेगानी ये दुनिया लगती  हैं मुझे अपनी
ज़माने भर की  दौलत हो जैसे आज इस फ़क़ीर के पास
ये तुम हो या तुम्हारे होने का अहसास।।।




बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

...शब्द तुम्हारे हैं

देखें हैं मेरे नैनों ने जो ...स्वप्न तुम्हारे हैं
लिखती है जो कलम मेरी...शब्द तुम्हारे हैं

सत्य है की मेरा अस्तित्व है तुमसे
जीवन मेरा बंधा है तुमसे
क्या हूँ मैं तुम्हरे बिन प्रिये
जियें हैं मैंने जो अब तक ...पल तुम्हारे हैं
लिखती है जो कलम मेरी...शब्द तुम्हारे हैं

ये संसार क्या जाने प्रेम की बातें
जहाँ तय करतें है भाग्य धर्म और जातें
प्रेम के रंग में रंगा हूँ मैं
मेरे ह्रदय से ना छूटे...ये रंग तुम्हारे हैं
लिखती है जो कलम मेरी...शब्द तुम्हारे हैं

कभी बनता हूँ मैं, कभी मिटता हूँ
कभी गिरता हूँ मैं, कभी संभलता हूँ
तुम्हारी स्म्रतियो का लिए सहारा
बढ़ा हूँ जिस पथ पर ...उस पर पदचिन्ह तुम्हारे हैं
लिखती है जो कलम मेरी...शब्द तुम्हारे हैं

कभी हारा हूँ मैं जीवनरण में, कभी टूटा हूँ
कभी आगे बढ़ा हूँ, कभी पीछे छूटा हूँ
कभी जो अंधियारी रात आई है
मेरे जीवन मे आए जो...सवेरे तुम्हारे हैं
लिखती है जो कलम मेरी...शब्द तुम्हारे हैं

देखें हैं मेरे नैनों ने जो ...स्वप्न तुम्हारे हैं
लिखती है जो कलम मेरी...शब्द तुम्हारे हैं









शनिवार, 8 जून 2013

तो बात कुछ और ही होती ...

जिंदगी हसीन है  तेरे बिन भी  यूँ तो
तू होती इसमें शामिल तो बात कुछ और ही होती ...


जागता हूँ मै ,सोता हूँ मैं
हँसता हूँ मैं ,रोता हूँ मैं
हाथ थामे ज़िन्दगी का  चलता हूँ मैं
साथ ग़र कुछ कदम तुम भी चलती तो बात कुछ और ही होती ...


टूटता हूँ मैं,संभालता हूँ मैं
गिरता हूँ मैं,उठता हूँ मैं
वक़्त के साथ कभी कुछ बदलता हूँ मैं
बदलती तुम भी साथ मेरे तो बात कुछ और ही होती ...

बढ़ता हूँ मैं ,थमता हूँ मैं
दौड़ता हूँ कभी ,कभी रुकता हूँ मैं
खोता हूँ कभी खुद को तेरी यादों के आगोश मे
खोती  कभी तू  खुद को मेरे लिए तो बात कुछ और ही होती ...


यूँ तो मंजिल  तेरे बगैर भी जाएगी मुझे
साथ गर राह पर तेरा मिल जाता तो बात कुछ और ही होती ...


                      "   तू जो कहें  कविता एक लिखने को ,मैं किताब लिख दूँ 
                           तू पूछे जो हसरत मेरी ,मैं अपने जज्बात लिख दूँ  "


मंगलवार, 12 मार्च 2013

उड़ चला गगन में ...


मन  परिंदा  फिर  उड़  चला  गगन  में ...
पंख खोले  ,कुछ  ना  बोले 
सपनो  से  मिलने  फिर  उड़  चला  गगन  में ….

ना  सीमाए  जाने  ना  बन्दिशें  माने 
छोड़  पीछे  लघु  घरोंदें, उड़  चला  गगन  में …

कुछ  रिश्तें  जो  बांधें  थे उड़ान को 
अनवरस  हि  उठे  उफान को 
तोड़  मोह  बंधन  मिथ्या, उड़  चला  गगन में…

ना  हार  अब  कोई  ना  जीत  कोई 
छोड़  भ्रम  संसार  के, उड़  चला  गगन में...

ना  रोके अब कोई न टोके अब कोई  
अब जो उड़ा है उड़ता ही  जाएगा  
फेंक दूर लोभ स्वर्ण पिंजरे के उड़ चला गगन में…


सोमवार, 14 जनवरी 2013

कहाँ

कहाँ खोजूँ वो सुकून के पल जो गुम गएँ हैं तेरी चाहत में कहीं
कहाँ  पाऊ वो ख़ुदा जो खो गया है तेरी इबादत में कहीं ...

 हैं तुझको  गिले बहुत ,कुछ मुझको भी तो हैं
कहाँ ढूँढु वो शिकवे मेरे जो खो गएँ हैं तेरी शिकायत में कहीं ....