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मंगलवार, 27 मार्च 2012

मन बावरा , बावरी सी हसरतें

मन बावरा ,बावरी सी हसरतें
दूर दूर तक जाये बाहें पसराये
यूँ ही हर पल करे कसरतें
मन बावरा , बावरी सी हसरतें


कभी कागज की नाव  बनाकर सपने साकार करे
कभी यूँ ही  बिन छुए खयाली चित्रों में रंग भरे
कभी कही रुके पल भर को
कभी हवाओं से बातें  करे
कभी उन्माद में उछला फिरे
कभी किसी सुन्दर ख्याल में
रात भर बदले करवटें
मन बावरा, बावरी सी हसरतें


कभी हो उदास यूँ ही गुम सुम सा हो जाता है
कभी किसी दूसरे की खुशियों की खातिर खुद को भूल जाता है
बजे कभी दूर जो मीठी सी धुन
सुरों पे खुद ही झूम जाता है
तो कभी अपनी ही धुन में खोकर
दुनिया की सुध बुध खो जाता है
कभी यूँ  ही खुद से खुद की कर बैठता है शिकायतें
मन बावरा, बावरी सी हसरतें

कभी प्रेम में पागल  हुआ दर दर घूमता है

कभी दम से अपने सफलता के शिखर चूमता है\
कभी कुछ कर गुजने को हर बाधा से जूझता है
बच्चे सा कभी खुद से रूठता भी है
फिर सोच के कुछ खुद को मनाता भी है
कभी गुनगुनाता है बोल सुने-सुने
कभी कहता है अनकही  सी कहावतें
मन बावरा, बावरी सी हसरतें

कभी मांगता है मन्नतें उनके लिए जो इसके अपने नहीं
कभी अपनों से बैर रखता है यूँ ही
जो घट चूका है न जाने कब का कभी उसमे  ही जीता है
याद करता है किसी मीत को घूंट आसुओ के पीता है
कभी देखकर उदास किसी को खुद भी उदास हो जाता है
कभी बनके सबब  किसी की मुस्कराहट का, खास बन जाता है
कभी सिखाता है दूसरो को जीने का ढंग
कभी खुद ही जीता है मरते मरते
मन बावरा, बावरी सी हसरतें


कभी जाना चाहता है दूर जहाँ कोई ना हो
कभी चाहता है पास हर कोई हो
बैठे -बैठे अजीब  सी उलझनों में डालता है
पर उलझनों से उबारता भी है
बस इसकी इन्हीं आदतों को सोच कर इसको बार-बार देता हूँ मै रियायतें
मन बावरा, बावरी सी हसरतें....


Himanshu Rajput











शनिवार, 17 मार्च 2012

न जाने क्यूँ...

दिन भर तमाम चेहरे देखता हूँ भले हि मैं
रात को महज एक तेरा चेहरा दिखाई देता है न जाने क्यूँ...

जो कभी एक झलक चाँद की पाना चाहूँ तो
चाँद में भी तेरा चेहरा नजर आता है न जाने क्यूँ...

गुनगुनाता हूँ कोई नगमा यूँ ही कभी जो
लगता है जैसे कहीं दूर सुन रही है तू न जाने क्यूँ..

दुआ में हाथ उठता जब कभी कुछ मांगने को खुदा से
बस तेरा ही नाम याद
आता है न जाने क्यूँ...

खयालो
से तेरे रोशन है ये मेरा जहाँ
अपने ख्वाबो में भी दीदार तेरा पाता हूँ न जाने क्यूँ...

कोई इसे
मेरा पागलपन कहे या दीवानापन 
सोचू तुझे तो दर्द में भी मुस्कुरा देता हूँ न जाने क्यूँ...

कभी इत्तेफाकन कहीं तू मिल जाये मुझे जो
नजरें खुद हि झुक
जाती है जैसे सजदे में हो न जाने क्यूँ...

अब दुनिया इसे प्यार कहे या मोहब्बत
मेरे लिए तो ये खुदाई है मेरे खुदा न जाने क्यूँ...

सोमवार, 12 मार्च 2012

कुछ यूँ समां गई है मुझमे वो...

कुछ यूँ समां गई है मुझमे वो
की अब अपने हि होने का एहसास नहीं होता
ना उसकी यादों के बिन रात होती है
ना उसे सोचे बगैर मेरा दिन हि होता

यादें उसकी जी भरके आती हैं
कहीं भी चला जाऊं मैं ख्याल उसका एक पल को नहीं जाता
तपती धूप हो या रिमझिम बरसता सावन 
साया सर से उसकी चाहत का कभी नहीं जाता


अकेला कही खड़ा हूँ या लाखो की भीड़ में
अक्स आँखों से उसका ओझल नहीं होता
खुद भी चली आओ ऐ मेरी हमदम मेरी वीरान जिंदगी में
फासलों का ये  मौसम अब और सहा नहीं जाता...

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

कुछ तो बात है

आज फिर से चली है  पुरवाई
आज फिर याद तुम्हारी आई
आज फिर अहसास अजीब सा दिल में उठा है...कुछ तो बात है


आज फिर दिल में उठा उमंगो का तूफ़ान
आज फिर मारा मेरी चाहतो ने उफान
आज फिर एक प्यारा सा कांटा चुभा है...कुछ तो बात है


ये हवाएं जरुर तुझे छूके आईं होगी
एक पल के लिए ही सही याद तुझे भी मेरी आईं होगी
कुछ उम्मीद आज फिर से जगी है...कुछ तो बात है


लाख छुपाये तू जज्बात ज़माने से
मैं जानता तेरे अनकहे एहसासों को
इन एहसासों में आज फिर मेरा दिल रमा है...कुछ तो बात है

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

तुम्हारे लिए

आज फिर रोया है ये दिल
रोया है ये दिल आज फिर तुम्हारे लिए


 लाख तूफां झेले हैं मेरी कश्ती ने यूँ तो
हवाएं कुछ ऐसे चली हैं अबके कि
वेदना अजीब सी  उठी है तुम्हारे लिए

यूँ तो यकीं नहीं ख्वाबो ख्यालो कि दुनिया में मुझे
न जाने क्यूँ  सपने बुनना  अच्छा लगता है  तुम्हारे लिए


वो कोई और होंगे जो जीते होंगे दौलत शोहरत  की खातिर
मेरी तो हर साँस चली है तुम्हारे लिए


अपने लिए कब कुछ माँगा है मैंने उस खुदा से
जब उठे हैं ये हाथ दुआ में उठे हैं तुम्हारे लिए


गलत हैं वो लोग जो जोड़ते मोहब्बत को जिस्म की बंदिशों में
मेरा इश्क तो रूहानी हुआ है तुम्हारे लिए

लाख वजहे हो सकती है इस जिंदगी को जीने वैसे तो
ना जाने क्यूँ मैंने अपना हर पल जिया है तुम्हारे लिए

तुम दूर रहो या पास , मुझे चाहो या नहीं क्या फर्क पड़ता है
मेरी हर धड़कन धड़कती है महज तुम्हारे लिए

काश ये मेरी जिंदगी भी एक  मधुर कविता होती
मेरी कविता का हर लफ्ज  होता तुम्हारे लिए


तुम यकीं करो या न करो
आज भी ये अंशु जीता है सिर्फ तुम्हारे लिए

*HimANSHU RAJput*











सोमवार, 23 जनवरी 2012

तुम दूर जा ना सकोगी

कुछ इस तरह फैले हैं अब मेरी मोहब्बत के दायरे
तुम मुझसे दूर जाना भी चाहो तो जा ना सकोगी। 
यूँ रह गए मेरी यादो के निशान तुम्हारे ह्रदय  पटल पर,
भुलाना भी चाहोगी मुझे तो भुला ना सकोगी।

ऐसे  तय किये हैं ये सफ़र साथ साथ हमने 
तुम कभी हाथ छुड़ाके जाना भी चाहो तो जा ना सकोगी।
चाहत की कसम कुछ यूँ चाहा है मैंने तुझे बरसो से
मुझे चाह के अब तुम किसी और को चाह ना सकोगी।

बंधी  है तुझसे मेरे रिश्ते की डोर ऐसे
तुम लाख चाहो इस रिश्ते को तुड़ा ना सकोगी।






रविवार, 3 जुलाई 2011

कभी-कभी


 कभी  कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि जैसे मैं और तू एक ही हैं
 एक  हि है  तेरी  और  मेरी  रूह , एक  जिस्म  एक  जान  हैं

कभी  कभी  मेरे  दिल में  ख्याल  आता  है  कि  जैसे  तेरे  मेरे  सपने  एक  हि  हैं,
 एक हि  हैं  हमारी  मंजिल ,

कभी  कभी  मेरे दिल  में  ख्याल  आता  है  कि  जैसे  आज  भी  तेरी  धड़कने  मेरे   लिए  धडकती  हैं ,
आज  भी  तू  मुझसे  मिलने  के  लिए तरसती  है ,

मैं  जानता हूँ  कि  अब  तुझपे  मेरा  हक  नहीं  पर  ना  जाने  क्यूँ  कभी  कभी  मेरे  दिल  में  ख्याल  आता  कि   जैसे  तू  मेरी  है  , मेरी  है  तेरी  बाहें मेरी  हैं  तेरी  आहें  

दूरियां  हैं  बहुत  दोनों  के  दरमियाँ  पर  कभी  कभी  मेरे  दिल में  ख्याल  आता  है  जैसे  हम  दोनों  जुदा  हुए  हि  नहीं , नहीं  अलग  हुए  तेरे  मेरे  रास्ते,  नहीं  अलग  हुई  हमारी  मंजिलें 

तू  कहे  ना  कहे  लेकिन  तेरी  आँखें  बोलती  हैं  कि  तू  आज  भी  मुझे  उतना  हि चाहती है ,आज  भी  तू  मेरी  यादों  के  सहारे  जीती  है , मेरे  नाम  पे  मरती  है

मै जानता  हू कि  अब  हम  कभी  नहीं  मिल  पाएंगे  ,पर  ना  जाने  क्यूँ  कभी  कभी  मेरे  दिल  में  ख्याल  आता  है  कि  जैसे  हम  कभी  जुदा  नहीं  हो  पाएंगे 

लाख  कोशिश  कि  तुझे   भुलाने  कि  मगर  भुला  ना  पाया ,कभी  कभी  मेरे  दिल  में  ख्याल  आता  है  कि  तेरी   यादें  हि  मेरी  जिंदगी  बन  गयी  है  और  तेरी  उम्मीद  मेरे  जीने  का  सबब …