मैं तुझसे खफा होकर जाऊ कहाँ ए खुदा
ये जहां तेरा है ये कायनात भी तेरी है...
खोजू तुझे क्यूँ पत्थर की इमारतों में
ये नजारें भी तेरे हैं ये नज़र भी तेरी है...
क्यूँ बांधू तेरी इबादत को वक़्त के दायरे में
ये शाम भी तेरी है ये सहर भी तेरी है....