दिन भर तमाम चेहरे देखता हूँ भले हि मैं
रात को महज एक तेरा चेहरा दिखाई देता है न जाने क्यूँ...
जो कभी एक झलक चाँद की पाना चाहूँ तो
चाँद में भी तेरा चेहरा नजर आता है न जाने क्यूँ...
गुनगुनाता हूँ कोई नगमा यूँ ही कभी जो
लगता है जैसे कहीं दूर सुन रही है तू न जाने क्यूँ..
दुआ में हाथ उठता जब कभी कुछ मांगने को खुदा से
बस तेरा ही नाम याद आता है न जाने क्यूँ...
खयालो से तेरे रोशन है ये मेरा जहाँ
अपने ख्वाबो में भी दीदार तेरा पाता हूँ न जाने क्यूँ...
कोई इसे मेरा पागलपन कहे या दीवानापन
सोचू तुझे तो दर्द में भी मुस्कुरा देता हूँ न जाने क्यूँ...
कभी इत्तेफाकन कहीं तू मिल जाये मुझे जो
नजरें खुद हि झुक जाती है जैसे सजदे में हो न जाने क्यूँ...
अब दुनिया इसे प्यार कहे या मोहब्बत
मेरे लिए तो ये खुदाई है ए मेरे खुदा न जाने क्यूँ...
रात को महज एक तेरा चेहरा दिखाई देता है न जाने क्यूँ...
जो कभी एक झलक चाँद की पाना चाहूँ तो
चाँद में भी तेरा चेहरा नजर आता है न जाने क्यूँ...
गुनगुनाता हूँ कोई नगमा यूँ ही कभी जो
लगता है जैसे कहीं दूर सुन रही है तू न जाने क्यूँ..
दुआ में हाथ उठता जब कभी कुछ मांगने को खुदा से
बस तेरा ही नाम याद आता है न जाने क्यूँ...
खयालो से तेरे रोशन है ये मेरा जहाँ
अपने ख्वाबो में भी दीदार तेरा पाता हूँ न जाने क्यूँ...
कोई इसे मेरा पागलपन कहे या दीवानापन
सोचू तुझे तो दर्द में भी मुस्कुरा देता हूँ न जाने क्यूँ...
कभी इत्तेफाकन कहीं तू मिल जाये मुझे जो
नजरें खुद हि झुक जाती है जैसे सजदे में हो न जाने क्यूँ...
अब दुनिया इसे प्यार कहे या मोहब्बत
मेरे लिए तो ये खुदाई है ए मेरे खुदा न जाने क्यूँ...
nice poem himanshu.
जवाब देंहटाएंThank you ...
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