रात की गुमशुम सी खामोशियों में
पलकों की दहलीज़ पे बैठे
कुछ झूठे ख्वाब नींद की राह तकते हैं...
मावस की रात के गहन तिमिर में
अंतर्मन के बिछोने पे लेटी
कुछ हसरतें चैन के लम्हों का इन्तजार करती हैं...
खिड़की से दूर कहीं जलती हुई
कोई इच्छाओ की चिता दिखाई देती है....
दिखाई देती है कुछ विदाई माँगती
मासूमियत और थोड़ी सादगी भी ...
ये मैं हूँ यहाँ या कोई उजड़ा
टूटा-फूटा घरौंदा है कोई...
सोचता हूँ तो प्रश्न और भी जटिल
आ खड़े हो जाते हैं...
प्रश्न वो जिन्हे हल करने का
ना होसला है अब मुझमे और नाही वक़्त है मेरे पास...
जिम्मेदारियों की चादर तले
कुछ आरजुओं के तकिये पे सर रखे
सोचता हूँ बस, बस किसी तरह
दो पल सुकूँ के मिले
मिले कुछ ख़्वाब झूठे ही
मिले कुछ हसरतें अधूरी ही
मिले कुछ मासूमियत वापस मेरी
काश !!! काश मिले मुझे दो पल, दो पल मुझे सुकूँ के मिले...
- हिमांशु राजपूत (ट्विटर :@simplyhimanshur)
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद व आभार आपका
हटाएंI am extraordinarily affected beside your writing talents, Thanks for this nice share.
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