Powered By Blogger

सोमवार, 12 मार्च 2012

कुछ यूँ समां गई है मुझमे वो...

कुछ यूँ समां गई है मुझमे वो
की अब अपने हि होने का एहसास नहीं होता
ना उसकी यादों के बिन रात होती है
ना उसे सोचे बगैर मेरा दिन हि होता

यादें उसकी जी भरके आती हैं
कहीं भी चला जाऊं मैं ख्याल उसका एक पल को नहीं जाता
तपती धूप हो या रिमझिम बरसता सावन 
साया सर से उसकी चाहत का कभी नहीं जाता


अकेला कही खड़ा हूँ या लाखो की भीड़ में
अक्स आँखों से उसका ओझल नहीं होता
खुद भी चली आओ ऐ मेरी हमदम मेरी वीरान जिंदगी में
फासलों का ये  मौसम अब और सहा नहीं जाता...

6 टिप्‍पणियां: